अगर आप बिजनेस में सफलता पाना चाहते हो तो उसके लिए आपके पास एक अच्छा आइडिया का होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है. इसी एक नए और यूनिक आइडिया की वजह से एक महिला उद्यमी ने लगभग 100 करोड़ रुपए से भी ज्यादा के टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर दी है. सबसे ज्यादा दिलचस्प बात तो यह है कि इस बिजनेस की मदद से हजारों कचरा बीनने वालों को रोजगार भी मिला है.
दिल्ली की रहने वाली अनिता आहूजा और उनके पति शलभ इस बहुत ही शानदार और अनोखे अभियान को अंजाम दे रहे हैं. तो चलिए जानते हैं किस तरह से उन्होंने कचरे से सुंदर वस्तुएं को बनाने का यह सफल कारोबार खड़ा कर दिया.
जिंदगी में कुछ नया करने के लिए कचरा बीनने वालों के लिए काम करना शुरू कर करा
सभी कचरा बीनने वालों की इस बुरी दुर्दशा को देखकर उन्होंने यह तय करा कि अब वे उनके जीवन को काफी अच्छा करने के लिए कुछ तो करेंगी. लिहाजा, एक सामाजिक उद्यम की शुरुआत करी जिसके तहत कूड़ा को उठा लेने वालों से ही प्लास्टिक कचरा को एकत्रित कर के फिर उससे विश्व-स्तरीय हैंडबैग को बनाना तय करा. उनका इस बिजनेस को लेकर किसी भी तरह से कोई प्लान पहले बिलकुल भी नहीं था.
एनजीओ ‘कंजर्व इंडिया’ की शुरुआत कचरा को एकत्र करना शुरू करा
अनिता ने एक दिन अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ मिलकर अपने ही इलाके में कुछ छोटे-छोटे प्रोजेक्ट को ले लेने सोचा था. फिर उन्होंने एक एनजीओ ‘कंजर्व इंडिया’ की शुरुआत कर दी और फिर इस परियोजना के तहत पूरे क्षेत्र से कचरा इकट्ठा करना शुरू कर दिया. रसोई के कचरे को एकत्रित कचरे से अलग कर पास के एक पार्क में खाद बनाने के लिए रख दिया जाता था. उसे शुरू से ही एहसास था कि अकेले कुछ हासिल नहीं होगा, इस वजह से अनिता आहूजा ने दूसरी कॉलोनी से भी मदद मांगनी शुरू कर दी. उनकी यह शुरुआत पैसे को कमाने के लिए बिलकुल भी नहीं थी.
3000 लोगों के साथ शुरू करा था काम
एनजीओ कंजर्व इंडिया ने करीब 3000 लोगों के साथ मिलकर इस रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत करी है. लगभग 4 साल तक अनिता आहूजा ने कचरा को बीनने वालों के साथ मिलकर काम करा था.
सबसे पहले वे बुनाई का काम करते थे और कालीन बनाते थे
अनिता आहूजा ने सबसे पहले बुनाई का काम करना शुरू किया और फिर कारपेट्स को भी बनाए. मगर ये उत्पाद बहुत सरल और साधारण लगते थे, और इसको करने मेहनत भी ज्यादा लगती थी और उन्हें इसको बेचना भी बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो रहा था. फिर उस समय अनिता आहूजा ने प्लास्टिक के बैग को बनाने का निर्णय लिया और फिर उनका यह नया आइडिया सफल रहा.
30 लाख का मिला था आर्डर
साल 2003 में कंजर्व इंडिया ने प्रगति मैदान के ट्रेड फेयर में हिस्सा लिया था. तभी ही टेक्सटाइल मंत्रालय ने उन्हें यह बूथ दिया था और फिर अनिता को इसमें लगभग 30 लाख का आर्डर मिल गया था. प्लास्टिक वेस्ट के लिए कूड़ा को बीनने वालों को घर-घर में जाकर कूड़ा को लेना होता था मगर वे अनुपात में भी बहुत ही कम रहता होता था. और आज के समय में कंजर्व इंडिया एक ब्रांड बन चूका है और इस कंपनी का टर्न-ओवर साल 2020 तक लगभग 100 करोड़ से भी ज्यादा तक पहुंच चूका था.