दुनिया में कहीं न कहीं किसी न किसी पर अपमान की घटना सामने आ ही जाती है. ऐसे में व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है और उसे किसी न किसी कारण से अपने अपमान का बदला लेने का मौका मिल ही जाता है. ऐसा ही कुछ सर रतन टाटा के साथ भी हुआ. फोर्ड कंपनी ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था. उनका बदला रतन टाटा ने इस तरह लिया था कि फोर्ड कंपनी के मालिक ने याद रखा होगा.
अपने नाखूनों से अपने दोस्तों की घड़ियों की मरम्मत करने वाले लड़के ने फोर्ड कंपनी की स्थापना की
हेनरी फोर्ड के पिता एक किसान थे, लेकिन उन्हें मशीनों से खेलने की आदत थी. इतना कि मैं अपने दोस्तों की घड़ियों की मरम्मत अपने नाखूनों से करता था और उन्हें चालू कर देता था. 1891 में, उन्हें थॉमस एडिसन की कंपनी में एक इंजीनियर के रूप में नौकरी मिली, जिन्होंने बाद में इलेक्ट्रिक लैंप का आविष्कार किया. वहां भी वह चुप नहीं रहा. 1896 में उन्होंने अपना चार पहिया वाहन बनाया. एडिसन ने भी इसकी सराहना की. बाद में 1903 में इस लड़के ने अपने नाम से फोर्ड मोटर कंपनी की स्थापना की. आज उनकी कंपनी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है.
रतन टाटा का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा है. जब वह छोटे थे तब उनके माता-पिता अलग हो गए थे. उनकी देखभाल उनकी दादी ने की थी. बाद में, संयुक्त राज्य अमेरिका में पढ़ाई के दौरान, उन्होंने बर्तन धोने से लेकर क्लर्क बनने तक, दस साल तक एक होटल में काम किया. 1962 में टाटा समूह में शामिल होने के बाद, उन्होंने जमशेदपुर में एक स्टील कंपनी में काम किया, जहाँ उन्होंने कोयला खनिक के रूप में काम किया.
उन्हें सौंपी गई नेल्को कंपनी आपात स्थिति में बंद हो गई. उनकी इम्प्रेस मिल भी 1977 में बंद हो गई. लेकिन बिना हार माने उन्होंने गुणवत्ता पर जोर देते हुए अपना काम जारी रखा. 1981 से वे टाटा कंपनी को सफलता के शिखर तक ले जा रहे हैं. गुणवत्ता वही है जो टाटा ने ईमानदारी से की. उस ताकत के दम पर दुनिया की कई कंपनियों को टाटा ने खरीद लिया.
फोर्ड ने किये हुए अपमान का ऐसे लिया बदला
1998 में टाटा मोटर्स ने अपनी इंडिका कार लॉन्च की. लेकिन उन्हें इस प्रोजेक्ट में अपेक्षित सफलता नहीं मिली उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. परियोजना के शेयरधारकों ने इंडिका परियोजना को बेचने की मांग की. रतन टाटा मान गए और फोर्ड कंपनी के साथ डील करने के लिए अपने पार्टनर्स के साथ अमेरिका चले गए. बैठक तीन घंटे तक चली. मुलाकात के दौरान फोर्ड के चेयरमैन रतन टाटा ने बदतमीजी की. यदि आपके पास व्यापार करने की बुद्धि नहीं है, तो आपने इतना पैसा क्यों लगाया?
शुक्र है कि इस परियोजना को खरीदने के लिए हमारे साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया. इससे रतन टाटा भारत लौटने पर दुखी हुए, उन्होंने फिर से इंडिका परियोजना पर ध्यान केंद्रित किया. दिन रात मेहनत की. 2008 में टाटा की इंडिका ने कई मुनाफा कमाया, जबकि फोर्ड की जगुआर और लैंड रोवर दिवालिया हो गई. अब टाटा की बारी थी. फोर्ड की जगुआर और लैंड रोवर को टाटा ने खरीदा. उस समय, फोर्ड के अध्यक्ष ने कहा, “इस परियोजना को खरीदकर, आप हमारी फोर्ड कंपनी पर एक एहसान कर रहे हैं.”