इंजीनियरिंग में फेल हुए युवक ने 25 साल की उम्र में शून्य से खडा किया करोड़ों का बिजनेस

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यह एक गलत धारणा है कि यदि आप महाराष्ट्र में कोई व्यवसाय करना चाहते हैं, तो आपके लोगों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि यह मारवाड़ी लोग हैं जो कपड़ों का व्यवसाय करने वाले हैं. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है. अगर हम पूरी क्षमता और लगन के साथ किसी क्षेत्र में कदम रखते हैं तो हम उसमें सफल हो सकते हैं.

एक युवक ने अपने परिवार को बताया कि वह कपड़े का व्यवसाय शुरू करना चाहता है. लेकिन घर से ही उसके पैर खींचना शुरू हो गया. यह एक मराठी आदमी की गलती है. हम कुछ भी करने से पहले अपने पैर खींचना शुरू कर देते हैं. लेकिन इस युवक ने बिना हारे 25 साल की उम्र में ही शुन्य से करोड़ों का धंधा खड़ा कर लिया है. आइए जानते हैं कैसे उन्हें ये सफलता मिली..

एक लड़का जो 10-20 रुपये के लिए लड़ता था अब 2 करोड़ रुपये का टर्नओवर कर रहा है. यह युवक पुणे जिले के इंदापुर तालुका के एक छोटे से गाँव लाखेवाड़ी के धनंजय नरवाडे हैं. एक किसान परिवार में जन्मे धनंजय का बचपन गरीबी में बीता. धनंजय की रुचि शिक्षा में थी लेकिन उन्हें पढ़ना पसंद नहीं था. उसे खेलना पसंद था. उसने 10वीं अच्छे अंकों के साथ पास किया. बाद में उनके माता-पिता ने शिरूर में एक कमरा किराए पर लिया ताकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके. वहां जैसेतैसे धनंजय ने 12वीं पास की. बाद में सीईटी में आगे की सीट पर आए छात्र ने उसे पेपर दिखाया और उसने 172 अंकों के साथ सीईटी पास कर लिया. बाद में पुणे में इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया.

पिता केवल 8-10 हजार रुपये की नौकरी करते थे. मामा ने पहले साल 1 लाख फीस देकर मदद की. बाद में उनके चाचा ने भी उनकी मदद की. पिताजी 4-5 हजार प्रति माह भेजते थे. वह कमरे का किराया और खाने का खर्चा उसमे से करता था. कॉलेज में उसे कुछ समझ नहीं आया. प्रथम वर्ष में 6 में से 5 विषय में नापास हुए. बाद में दूसरे सेमेस्टर में उसके पुरे ही विषय गए. उन्होंने अगले 6 महीने बिताए और गाँव लौट आए. वहां उसके चाचाने उसे अपने व्यवसाय में काम करने के लिए कहा. लेकिन धनंजय को पुणे की जिंदगी की आदत हो गई थी. एक चाचा ठेकेदार थे इसलिए उन्हें निर्माण स्थल पर 5-6 महीने काम करना पड़ा. वह नए बांधकाम पर पानी मारना, लेबर का ट्रांसपोर्ट करना ऐसे काम करने पड़े.

ऐसा काम करके धनंजय को शिक्षा के मूल्य का एहसास हुआ. उन्होंने पुन: पुणे जाने का निश्चय किया. वह एक दोस्त के साथ प्लॉटिंग के धंधे में शामिल हो गया. असफलता भी मिली. परिजन अब उसे वह कुछ भी नहीं कर सकता ऐसा बोलने लगे. उसे जोरदार झटका लगा. धनंजय के कपड़ों का चुनाव बहुत अच्छा था. दोस्त उसे कपड़े लेने के लिए साथ ले जाते थे. उन्होंने अपनी दुकान शुरू करने का फैसला किया. बाबा ने 1.5 लाख रुपये की मदद की. उसने ब्याज पर पैसे लिए थे.

उन्होंने 10 बाय 12 का एक दुकान किराय पर लेकर शुरुआत की. माता-पिता ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि शिरूर में 3 बड़ी मारवाड़ी दुकानें हैं, आपकी छोटी सी दुकान पर कौन आएगा? पैसा क्यों बर्बाद करें? पिता ने कहा कि वह मदद नहीं करेगे. एक दोस्त की मदद से उसने एक दुकान शुरू की. उन्हें बहुत कम रिस्पॉन्स मिलने लगा. पार्टनर दुकान छोड़कर चला गया क्योंकि वह इसे वहन नहीं कर सकता था. धनंजय ने काम जारी रखने का फैसला किया.

उन्होंने बाजार का अभ्यास किया. उन्होंने देखा कि अन्य व्यापारी 300 का शर्ट 900 रूपये में बेच रहे थे. उसने इस लूट के प्रति लोगों को जागरूक किया और 500 में वही शर्ट देने लगा. लोग उसके पास आने लगे. सोशल मीडिया ने उनकी काफी मदद की. उसने धीरे-धीरे ग्राहकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उसमें उसे सफलता मिलने लगी और धंदे में जम बैठने लगा. उसने अनुमान लगाया कि बाजार में सबसे सस्ते कपड़े कहां हैं. उसे एहसास हुआ कि अगर वह और स्टॉक ले लेगा तो वह दिल्ली से भी माल ला सकेगा. उसने अपने चाचा के साथ शिकरापुर में एक और शाखा खोली. बहुत अच्छा रिस्पांस मिला.

ऐसा करते हुए उन्होंने वाघोली में एक और दुकान खोल ली. उसने शिरूर में दुकान बड़ी कर दी. डिजाइन को भारी बना दिया. तब फ्रेंचाइजी की मांग थी. एक छोटी सी दुकान से शुरू होकर आज वह करीब 20 दुकानों का मालिक बन गया है. उन्होंने लोगों को 17 फ्रेंचाइजी दी हैं और वर्तमान में पुणे में 3 दुकानो का काम चल रहां हैं. उसने धीरे-धीरे अपने कपड़े खुद बनाने का फैसला किया. लाभ अधिक था क्योंकि उसने अपने कपड़े खुद बनाना शुरू कर दिया था. धनंजय खुद अब तक 5-6 हजार शर्ट डिजाइन कर चुके हैं.

आज, यह अपने साई ब्रांड के माध्यम से 50 से 60 लोगों को रोजगार देता है. 4 साल में इंजीनियरिंग में फेल हुए लड़के से 25 साल की उम्र में करोड़ों का कारोबार करने वाले एक सफल उद्यमी वह बन गए है. एक जमाने में कार में पेट्रोल डालने के पैसे नहीं थे. कपड़े खरीदने के लिए पैसे नहीं रखने वाले धनंजय ने आज अपना खुद का कपड़ों का ब्रांड बनाया है.

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