एक समय था जब 10 हजार की नौकरी करता था ये शख्स, एक साधारण शुरुआत से खड़ी कर दी 500 करोड़ की कंपनी

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हमारी आज की कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसने 90 के दशक में तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए सफलता का एक शानदार साम्राज्य खड़ा किया था.

पुणे के एक कुलीन मध्यमवर्गीय परिवार में 56 वर्षीय रवींद्र जगताप का जन्म हुआ था. अपने माता-पिता की चार संतानों में से एक, इंजीनियरिंग की डिग्री रवींद्र के लिए एकमात्र उम्मीद थी उन्होंने बहुत ही बड़ी मुश्किलों के बीच इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करी थी. फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नौकरी पाने की थी. कुछ वर्षों तक नौकरी की तलाश करने के बाद, रवींद्र को मेटाकेम नामक कंपनी में नौकरी मिल गई और अगले वर्ष उन्होंने शादी कर ली.

साल 1995 में अचानक रवींद्र की कंपनी के मालिक की मौत हो गई. फिर उसके बाद कंपनी के नए प्रबंधन ने कारोबार को एक नई दिशा में लेकर जाने का फैसला करा. अपने गुरु की मृत्यु और कंपनी में तेजी से बदलाव के कारण, रवींद्र ने अपनी नौकरी छोड़ दी. 5000-10000 रुपये के अल्प वेतन ने उन्हें मुंबई जैसे शहर में कुछ भी बचता नहीं था.

यह समय रवींद्र के जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था. रवींद्र के लिए परिवार की देखभाल करना और नए रोजगार की तलाश करना एक भारी बोझ था, यह रवींद्र की आशा थी जिसने उन्हें स्वरोजगार पर विचार करने के लिए राजी किया. मगर ये सबसे बड़ी चुनौती थी बिना किसी कार्यशील पूंजी के शुरुआत करना.

रवींद्र को कुछ नया करने की कोशिश करनी थी. प्रारंभिक शोध के बाद उन्होंने फैसला किया कि वह फार्मा सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले इंग्रेडिएंट्स से जुड़ा बिजनेस करेंगे.

रवींद्र ने आस्ट्रिड इंटरनेशनल के बैनर तले अपने सपने की नींव रखी. यह साल 1997 की बात है, तब कंपनी सिर्फ एक ही प्रोडक्ट ‘मेटफॉर्मिन एचसीएल’ में डील करती थी. उन्होंने एपीआई उत्पादों पर शोध करा था, जिसे की दूसरे देशों में निर्यात करा जा सकता है. रवींद्र ने व्यापार निर्देशिकाओं की सहायता से राष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं और अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों का पता लगाने के लिए पुस्तकालयों का दौरा करना जारी रखा.

यह पूर्व-ईमेल युग था और उस समय डाक मेल ही संचार का एकमात्र साधन था. डाक के माध्यम से उत्तर प्राप्त करने के लिए दो महीने तक इंतजार करना पड़ा. लंबे इंतजार के बाद भी उन्हें किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी से जवाब नहीं मिला. रवींद्र ने हार बिलकुल भी नहीं मानी और लगातार ही काम करते रहे, छोटे से लेकर बड़े ग्राहक तक खोजें. वर्ष 1997 में अस्तित्व के लिए शुरू हुई गतिविधि पहले ही वर्ष में 20 लाख रुपये का कारोबार कर चुकी है.

आज आस्ट्रिड ग्रुप का सालाना टर्नओवर 150 करोड़ रुपये और वैल्यूएशन 500 करोड़ रुपये से ज्यादा है. कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट महाराष्ट्र के मलाड इलाके में है. कंपनी की रिसर्च विंग लगातार नए उत्पादों पर शोध कर रही है. भारत, चीन और दुबई में अपने कार्यालय हैं – आस्ट्रिड दुनिया भर के 50 से अधिक देशों में निर्यात कर रहा है. कंपनी ने पर्यावरणीय स्थिरता लाने के इरादे से एक नई ग्रीनफील्ड विनिर्माण सुविधा पर भी काम करना शुरू कर दिया है. 50 करोड़ रुपये की लागत इस नई इकाई को बनाया जा रहा है.

कंपनी ने पर्यावरणीय स्थिरता लाने के उद्देश्य से एक नई ग्रीनफील्ड निर्माण सुविधा पर भी काम शुरू कर दिया है. इस नई इकाई का निर्माण 50 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है. अभी के समय में रवींद्र की यह कंपनी भारत और विश्व स्तर पर करीब सभी प्रमुख फार्मा कंपनियों के साथ काम कर रही है.

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