रमेश बाबू नाम का यह नाई कोई साधारण नाई नहीं है. रमेश बाबू करोड़पति हैं और 67 कारों के मालिक हैं.रमेश बाबू 43 साल के हैं. बैंगलोर के अनंतपुर के रहने वाले रमेश ने 7 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था. पिता की मौत के बाद रमेश बाबू की मां ने लोगों के घरों में खाना बनाया ताकि बच्चों का पेट भर सके.
रमेश के पिता की दुकान उसके चाचा ने केवल 5 रुपये प्रति माह के किराए पर ली थी. रमेश के पिता बैंगलोर के चेन्नास्वामी स्टेडियम के पास खुद की नाई की दुकान चलाते थे. उस समय पांच रुपये बहुत छोटी रकम थी. पांच रुपये में घर चलना बहुत मुश्किल काम था.
उनकी जरूरत पांच रुपये में पूरी नहीं हो पा रही थी. वे तीन भाई-बहन थे. तीनों को मजबूरन दिन में एक बार खाना शुरू करना पड़ा. रमेश ने अपनी मां की मदद के लिए छोटे-छोटे काम भी शुरू कर दिए, जो दूसरे लोगों के घरों में काम करने लगे. हाई स्कूल में रहते हुए, उन्होंने अखबार और दूध की बोतलें बेचना शुरू कर दिया. उन मुश्किल दिनों में, किसी तरह उनका पूरा परिवार एक साथ आया और उनके दर्दनाक दिनों में एक-दूसरे की मदद की. जीवन के इन उतार-चढ़ावों के दौरान उन्होंने 10वीं और 12वीं की पढ़ाई की. वह बारहवीं में फेल हो गया.
बारहवीं कक्षा में फेल होने के बाद रमेश बाबू तमाम मुश्किलों के बावजूद एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में पढ़ते थे. बारहवीं कक्षा में फेल होने के बाद उन्होंने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान से इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किया. 1989 में, उन्होंने अपने पिता की दुकान संभाली और नए सिरे से शुरुआत की. उसने दुकान का आधुनिकीकरण करके बहुत पैसा कमाया और एक मारुति वैन खरीदी. खुद ड्राइव करने में असमर्थ, उसने एक कार किराए पर ली.
आज रमेश बाबू के पास 256 कारों का बेड़ा है. और 60 से अधिक ड्राइवर हैं. 9 मर्सिडीज, 6 बीएमडब्ल्यू, एक जगुआर, तीन ऑडी कार भी हैं और रोल्स रॉयस जैसी महंगी कार चलाकर वे लोगों से एक दिन के किराए के लिए 50,000 रुपये तक चार्ज करते हैं. इतना सब काम करने के बाद भी उन्होंने अपने पुश्तैनी काम को नहीं छोड़ा. वह आज भी अपने पिता का सैलून इनर स्पेस चलाते हैं, जिसमें वह रोजाना 2 घंटे क्लाइंट्स के बाल काटते हैं.
2004 में जब रमेश बाबू ने पहली बार लग्जरी कार खरीदी तो सभी ने कहा कि वह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. 2004 में 40 लाख रुपये खर्च करना बड़ी बात थी. रमेश कहते हैं कि मेरे मन में भी कुछ शंका थी, दुविधा भी थी. लेकिन, उन्हें व्यवसाय बढ़ाने के लिए जोखिम उठाना पड़ा, इसलिए उन्होंने इसे ले लिया.
साथ ही मैंने सोचा कि अगर बात बिगड़ गई तो मैं एक लग्जरी कार बेच दूंगा. वह मेरे लिए फायदेमंद थी. कुछ लोगों के पास सेकेंड हैंड कारें थीं, लेकिन लोगों की पसंद मेरी नई लग्जरी कार बन गई. हम आपको बता दें कि 2004 में वह बंगलुरु में लग्जरी कार किराए पर लेने वाले पहले व्यक्ति थे.
उनका मानना है कि बड़े शहरों में बिजनेस को सफल होने में लंबा समय लगता है, लेकिन छोटे शहरों में आपके पास कई विकल्प हैं.