पांचवें असफल बच्चे ने साबित कर दिया है कि साहस और मेहनत के बिना जीवन में कोई सफलता नहीं है. उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई. घर की जिम्मेदारी उन पर आ गई. उसने अपना पेट भरने के लिए पुणे जाने का फैसला किया. उसने एक ठेला किराए पर लिया और उस पर अंडे बेचने लगा. जब उसने ठेला स्टार्ट किया तो उसके पास बर्तन भी नहीं थे. दोस्तों ने भी उसे बरतन देने में मदद की. वह इसमें धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और आज पुणे में 12 आउटलेट शुरू कर दिए हैं. आइए जानें उनके सफर के बारे में.
युवक का है नाम भगवान गिरी. भगवान के परिवार में माता, पिता, बहन और भाई. एक किसान परिवार. सब कुछ सुचारू रूप से चला. लेकिन एक दिन एक त्रासदी हुई. भगवान के पिता की अकाल मृत्यु हो गई. परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. उस समय, भगवान की उम्र भी कम थी. कोई ध्यान नहीं दे रहा था. इसलिए परिवार अकेला रह गया. माँ उन चारों को खाना नहीं खिला सकती थी. पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. पैरों में चप्पल नहीं थी.
इससे पहले स्थिति ठीक थी. लेकिन उसके पिता का अस्पताल में बहुत खर्च आया. नतीजतन, वे कर्जदार हो गए. भगवान की स्थिति के कारण पांचवीं कक्षा तक शिक्षा हुई. वह अपनी बड़ी बहन की शादी को लेकर चिंतित था. भगवान ने 5-6 महीने गांव में एक आदमी की ट्रेवल्स पर काम किया. उन्होंने अपनी भोजन की समस्या को हल करने के लिए वहां काम किया. एक बार मालिक का एक मित्र उन यात्राओं पर पुणे से गाँव आया था. उसने भगवान की ओर देखा और पूछा. फिर उन्होंने अपने बॉस से पूछा कि क्या मैं उन्हें पुणे ले जा सकता हूं. उसका अच्छे से ख्याल रखेंगे. मालिक तैयार होगया. भगवान ने भी सोचा था कि अच्छा खाना और चप्पल भी मिलेगी .
उनके पिता के जाने के बाद से सब हालत बिगड़ गए थे. भगवान पुणे आए और कई सालों तक मालिक के दोस्त की दुकान में काम किया. वहां उन्होंने बहुत कुछ सीखा. उसने व्यापार सीखा. जब वह मालिक के पास रहता था तो सब्जी बेचता था. दिवाली के लिए उनकी दुकान थी वो भी वह संभालते थे. उसने सोचा कि जीवन में आगे क्या करना है. सात बजे तक दुकान में काम करता था. बादमे यह खाली रहता था. इसलिए वह मक्का का ठेला चलाने लगा. उन्होंने इसे भूनना और बेचना शुरू कर दिया.
2-3 महीने के लिए उन्होंने एक कॉर्न की गाड़ी लगाई, जिससे उन्हें 5-6 हजार रुपये की कमाई हुई. उसे खुद पर विश्वास था कि वह कुछ कर सकते हैं. वह रोज शाम को दोस्तों के साथ बैठता था. फिर चैट से विषय आया कि अंडा भुर्जी ट्रेन चलाई जाए. उस समय भगवान अंडे की गंध को बर्दाश्त नहीं होती थी. क्यूंकि वे गोसावी समुदाय के थे, इसलिए उनके बीच यह व्यवसाय नहीं किया जाता था. उन्होंने एक दोस्त से अंडे की भुर्जी बनाना सीखा.
उन्होंने एक ठेला किराए पर लेकर शुरुआत की. वह रोजाना 40 रुपये में एक ठेला लेकर आया था. यह भी सवाल था कि ठेला कहां पार्क की जाए. वह उस मालिक को नहीं बता सका जो उसे पुणे लाया था. दोस्तों हर चीज के लिए उसकी मदद की. उन्होंने पड़ोसी से भुर्जी बनाना सीखा. उनके दोस्त ने भी प्याज काटा. पहले दिन उनका कारोबार 70 रुपये का हुआ. इससे उन्होंने सीखा कि हम इसमें अच्छा काम कर सकते हैं.
भगवान ने शुरू में अपने अंडे की गाड़ी में 3 चीजें रखीं. धीरे-धीरे उन्होंने इसमें अलग-अलग तरह के पदार्थ खुद बनाए. उन्होंने अपना अलग स्वाद बनाया. लोगों की प्रतिक्रियाएं बढ़ीं, लोगों को उसके हाथों का स्वाद पसंद आने लगा. वह अच्छा पैसा कमाने लगा. फिर उन्होंने अपना खुद का ब्रांड बनाने का फैसला किया. इसके लिए मसालों के रूप में इसका स्वाद लाने की कोशिश की. इससे उनके मसाला पाउच को बनाते समय काफी नुकसान भी हुआ. क्योंकि उसकी परीक्षा होनी थी.
अंतत: वह सफल हुआ. इससे वह अब फ्रैंचाइज़ी की पेशकश कर सकते थे. अब वो नहीं भी रहता था तो कोई भी इसका स्वाद बना सकता था. उसने 40-50 अलग अलग पदार्थ तैयार किए थे. उन्होंने अपने मसाले का सभी कानूनी पंजीकरण कराया. सभी आवश्यक लाइसेंस निकाल लिए. उन्होंने एक खाद्य ट्रक बनाया. ब्रांडिंग की. खुद का प्रोडक्ट बनाया. पांचवी पास इस लड़के ने आज पुणे में 12 आउटलेट स्थापित कर लिए हैं टर्नओवर भी लाखो रुपयों में है.