कभी 2 हजार रुपये नौकरी करते थे, दिमाग में था धमाकेदार आइडिया; आज है 28 हजार करोड़ रुपये के मालिक

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आज हम उस कंपनी के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने भारत के करोड़ों युवाओं के जीवन में क्रांति ला दी है उन्होंने दो बेहद मुश्किल कामों को काफी हद तक आसान कर दिया है. वे दोनों कठिन काम हैं – बेहतर जीवन के लिए एक अच्छी नौकरी ढूंढना और शादी के लिए जीवन साथी ढूंढना. इंफोएज़ ने ये दोनों काम आसान कर दिए हैं.

इस कंपनी के निर्माता का नाम संजीव बिकचंदानी है. साल 2020 में बिकचंदानी को पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. तो आइए जानते हैं संजीव बिकचंदानी की सफलता के बारे में.

नौकरी नहीं, कुछ बड़ा करना था

संजीव बिकचंदानी जब पढ़ रहे थे तो उन्हें लगा कि उन्हें कुछ बड़ा करना चाहिए. संजीव बिकचंदानी यह चाहते थे कि कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कुछ ही समय के लिए नौकरी करे और फिर नौकरी छोड़कर कोई बड़ा काम करे.

दो कंपनियों की रखी नींव

अपने घर में नौकर के कमरे से संजीव बिकचंदानी ने काम की शुरुआत करी, 1990 में, उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ दो कंपनियों की स्थापना की. एक का नाम इंडमार्क और दूसरी इंफोएज़ था. तीन साल साथ काम करने के बाद 1993 में दोनों पार्टनर अलग हो गए. संजीव बिकचंदानी के हिस्से में इंफोएज़ आई. इंफोएज़ का मुख्य काम सैलरी से जुड़ा सर्वे करना था.

चूंकि शुरुआती दिनों में कमाई बचाने के लिए पर्याप्त नहीं थी, इसलिए संजीव ने कई संस्थानों में जाकर कोचिंग क्लास दी. इन कक्षाओं से वह लगभग 2000 रुपये महीना कमा लेता था ताकि वह अपना खर्च निकाल सके.

यूं आया नौकरी.कॉम का विचार

साल 1996 में संजीव दिल्ली में एक आईटी एशिया एग्जिबिशन में गए और संजीव की नज़र वहा पर एक स्टॉल पर पड़ी, वहा पर लिखा था ववव और संजीव स्टॉल पर पहुंचे और पूछताछ करने पर पता चला कि वीएसएनएल के ई-मेल अकाउंट बेचे जा रहे हैं. और उस विक्रेता ने बताया कि आखिर ये ई-मेल क्या है और इसका इस्तेमाल किस तरह से करा जाता है.

संजीव ने ई-मेल विक्रेता से उसके लिए एक वेबसाइट बनाने को कहा. उस रिटेलर ने कहा कि सभी सर्वर यूएस में हैं, इसलिए वह उनके लिए वेबसाइट नहीं बना सकता.

संजीव के बड़े भाई अमेरिका के एक बिजनेस स्कूल में प्रोफेसर थे. संजीव ने उन्हें उसी समय ही फोन कर दिया और कहा कि वे एक वेबसाइट की शुरुआत करना चाहते हैं, जिसके लिए सर्वर की आवश्यकता है. मगर उनके पास पैसा बिलकुल भी नहीं है, वह उन्हें बाद में पैसे दे देगा. फिर संजीव का भाई इस बात को मान गया और इस तरह नौकरी.कॉम की शुरुआत हुई.

ऐसे हुई नौकरी.कॉम की लॉन्चिंग

अब वेबसाइट बनाई जा चुकी थी मगर वेबसाइट की लॉन्चिंग बाकी थी. 90 के दशक के मध्य में मंदी का दौर शुरू हो चूका था. लोग अपनी नौकरी खो रहे थे. संजीव और उनकी टीम को लगा कि लॉन्च करने का यह सही समय है और नौकरी.कॉम को भी कुछ डेटा के साथ लॉन्च कर दिया गया.

बिजनेस का फंडा

नौकरी.कॉम ने पहले साल में सिर्फ 2.5 लाख रुपए का बिजनेस किया था. जबकि 80 प्रतिशत नौकरियां मुफ्त में उपलब्ध थीं. फिर अगले साल हुआ 18 लाख का कारोबार, तो फिर लोगों ने संजीव बिकचंदानी को फंडिंग के लिए फोन करना शुरू कर दिया. और आज के समय में इंफोएज़ की वैल्यूएशन लगभग 85,760 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की है.

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