अगर घर में गरीबी है तो माता-पिता को अपने होने वाले बच्चे से बहुत उम्मीदें होती हैं. जो लड़का या लड़की पैदा हुआ है, उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह सीखकर बड़ा होगा और अपना नाम कमाएगा और घर की आर्थिक स्थिति को बदल देगा. जितना उन्होंने सहा था उतना बच्चों के नशीब ना आए ऐसा उन्हें लगता है. क्युकी उन्होंने स्थिति के झटके सहे हुए रहते हैं. ऐसेही खराब स्थिति का सामना कर चुके एक बच्चे ने अपने सपने को पूरा करके अपने माता-पिता पर हुए अपमान का बदला लिया है.
पुणे जिले के जुन्नर तालुका का एक गाँव है राजुरी. गांव में बलवंतराव औटी का बेहद गरीब किसान परिवार. बलवंतराव खेती-बाड़ी कर जीवन यापन करते थे. गन्ने का घर. घर भी नहीं झोपड़ी ही थी. स्कूल और उनका कभी रिश्ता नहीं रहा. वे खेतों में काम करके जीवन यापन करते थे. बलवंतराव का एक पुत्र था. बच्चे के जन्म ने उनके सपनों को जन्म दिया. बच्चे को पढ़ाकर बड़ा करने का फैसला किया. लेकिन साथ ही समय ने उन पर हमला कर दिया. उनका एक बड़ा एक्सीडेंट हो गया था जिसमें उन्होंने अपने दोनों पैर गंवा दिए थे. वे बिना किसी सहारे के चल नहीं सकते थे. जैसे ही वह ठीक होने लगा, उसे देवी का रोग हो गया जिससे उसकी आँखों में भी संक्रमण हो गया.
बलवंतराव, जो अंधा और अपंग था अंदर से टूट गया था. लेकिन पत्नी ने हार नहीं मानी. लोगों के खेतों में काम करने लगे. वह लोगों के खेतों में नंगे पांव काम करती थी . घर में एक छोटा लड़का और बिस्तर पर पड़ा पति. उन दोनों की देखभाल अकेले बलवंतराव की पत्नी को करना था. उसने बच्चे को शिक्षित करने और अपने पति का इलाज करने के लिए कड़ी मेहनत की.
लड़के को उसके घर के पास के एक स्कूल में भेज दिया. लड़का नंगे पांव स्कूल जाता था. उसे टिफिन ले जाना तो पता भी नहीं था. घर में चपाती त्योहारों पर ही खाई जाती थी. लड़का एक पुरानी किताब के साथ स्कूल में पढ़ता था. उस स्थिति में लड़के ने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए शिक्षा प्राप्त की. प्रारंभिक शिक्षा जिला परिषद स्कूल में हुई. बाद में उन्होंने विद्या विकास हाई स्कूल में प्रवेश लिया. 10वीं पास की. बाद में कॉलेज गांव से 6-7 किमी दूर होने के कारण कॉलेज जाने की समस्या उत्पन्न हो गई. स्थिति के कारण आगे की शिक्षा कठिन थी लेकिन गांव के लोगों ने माता-पिता को भैंस लेने के लिए मना लिया. लड़के ने गांव में भैंस का दूध बांटा और साइकिल से कॉलेज जाने लगा.
बारहवीं विज्ञान में सफलता प्राप्त की. आगे की पढ़ाई के लिए ओतूर गांव जाना पड़ा. घर से दूरी 20 किमी थी. घर का कर्ज बढ़ गया था. पिता बहुत गालिया देते थे. उनका मिजाज बहुत गुस्से वाला था. माँ भी बहुत रोई. यह देख लड़के ने गांव और घर छोड़ने का फैसला किया. उसने भैंस बेची, आधा पैसा अपनी मां को दिया और आधा पैसा लेकर पुणे पहुंच गया. वहां जाने के बाद किराये पर रूम लिया. उसने दूध के बैग बाँटने शुरू कर दिए. कई मुश्किलें आईं लेकिन हार नहीं मानने का फैसला किया. धनकवाड़ी में एक छोटे से कमरे में जो मुफ्त में मिला वह ट्यूशन लेता था. यहीं से उन्होंने बच्चों की ट्यूशन लेनी शुरू की. मुझे 1000-1500 रुपये मिलते थे.
4500 महीने की नौकरी ज्वाइन की. अपनी मां के लिए कुछ पैसे बचाता था. ट्यूशन को बड़ा करने की कोशिश की. वहां राजनीति का सामना करना पड़ा. किताब बेचने का व्यवसाय शुरू किया. घर घर में जाकर किताब बेच दी. लोग बेदखल करते थे लेकिन हार नहीं मानी. प्रमोशन हुआ था. कई शहरों की यात्रा की. इस बीच पैसा भी अच्छा कमा लिया. गांव जाके पहले लोगों का कर्ज चुकाया. मां-बाप की आंखों में खुशी के आंसू थे.
मुंबई में प्रमोशन के बाद मालिक बेंगलुरु लौट आए. इसके बाद उन्होंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया. फिर नासिक का रुख किया. वहां काम करते हुए पता चला कि पिता को कैंसर है. अब उसके पास पैसे थे, उसने खुद के 4-5 ऑफिस खोल लिए थे. गांव के लोगों का कहना है कि अब अस्पताल में पैसे क्यों खर्च करें. पिता वृद्ध हैं. लेकिन लड़के ने हार नहीं मानी और अच्छे अस्पताल में नासिक में इलाज किया.
अपना खुद का व्यवसाय बढ़ाएं. एक फूड कंपनी की फ्रेंचाइजी ली. इसमें बहुत पैसा खर्च किया. बुरी लत लग गयी. कार बेचनी पड़ी. सर पर कर्जा फिर बढ़ा. पिता कैंसर से घर आए लेकिन जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई. फिर शादी हुई. पत्नी आधार बन गई. विदेश में बसे भाई ने बहुत सहयोग दिया. माँ ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा कि ऐसे दिन देखने के लिए इतने कष्ट से नहीं बढ़ाया. उसी दिन नशा छोड़ दिया. उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रखकर दोबारा पढ़ाई शुरू की.
फिर छोटे-छोटे प्रोग्राम लेना शुरू किया. उन्होंने लोगों को मोटिवेशन का पाठ पढ़ाना शुरू किया. लोगो को बहुत पसंद आया. अपने भाई की मदद से विदेश जाकर काम कर पाया. इंडियन इंटेलिजन्स डिपार्टमेंट में पाठ लेने का मौका मिला. साथ में कई वरिष्ठ अधिकारी का साथ मिला. बड़े संस्थानों में पढ़ाया . तरक्की का ग्राफ बढ़ रहा था. सर्वे कंपनी शुरू अपना प्रकाशन गृह शुरू किया. कड़ी मेहनत से पढ़ाने वाली मां को एक महंगी कार दी. दिलीप औटी एक ऐसा लड़का है जिन्होंने अपनी माँ के मेहनत को सफल किया. उनके संघर्ष को सलाम.