पिता चाहते थे बेटा डॉक्टर बने, मेहनत से बढ़े आगे; आज है 200 करोड़ रुपये के मालिक

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सद्गुरु जग्गी वासुदेव, जो की सद्गुरु के नाम से लोकप्रिय है, एक भारतीय योगी, रहस्यवादी और लेखक हैं. वह पद्म विभूषण से सम्मानित हैं और समय-समय पर कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने उन्हें ‘शीर्ष 100 सबसे शक्तिशाली भारतीयों’ के रूप में सूचीबद्ध किया है. आध्यात्मिकता, सामाजिक कार्य और प्रकृति संरक्षण में उनके कार्यक्षेत्र को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. वह एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व हैं और World Economic Forum जैसे विभिन्न प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर दिखाई दिए हैं. सद्गुरु का जीवन निश्चय ही प्रेरणादायक रहा है. आइये इस पोस्ट के माध्यम से हम सद्गुरु को थोड़ा और विस्तार से जानते हैं.

प्रारंभिक जीवन
सद्गुरु जग्गी वासुदेव का जन्म भारत में 3 सितंबर, 1957 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ था. उनके 3 भाई-बहन और थे और वह सबसे छोटे थे. उनकी माँ एक गृहिणी थीं और परिवार की सबसे सम्मानित सदस्य थीं. उनके पिता एक डॉक्टर थे और चाहते थे कि उनके बच्चे भी उसी पेशे को अपनाएं. उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन से अपने नोट्स को भी सहेज कर रखा था ताकि उनके बच्चे डॉक्टर बनने के लिए अध्ययन करते समय नोट्स का उपयोग कर सकें. हालाँकि, उनके सभी बच्चे अलग-अलग रास्तों पर चले गए.

सद्गुरु की बचपन से ही प्रकृति का निरीक्षण करने में गहरी रुचि थी. वह बिना समय की परवाह किये जंगलों में घंटों बिता सकते थे. उन्होंने अनजाने में पत्तियों और पौधों पर ध्यान देने के दौरान अपना ध्यान लगाना शुरू कर दिया, जिसने उनके भविष्य को बहुत आकार दिया. सद्‌गुरु ने श्री राघवेंद्र राव (मल्लदीहल्ली स्वामी) के मार्गदर्शन में तेरह वर्ष की आयु में योग, प्राणायाम और ध्यान करना शुरू किया. उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्नाटक के (Mysore university)मैसूर विश्वविद्यालय से स्नातक(graduation) की पढ़ाई पूरी की.

पेशेवर ज़िंदगी
सद्‌गुरु ने अपने जीवन में कई चीजों को करने की कोशिश की और जिसमें भी उन्होंने हाथ लगाया, उसमें वे सफल रहे. सद्गुरु ने छोटी उम्र से ही कमाई शुरू कर दी थी क्योंकि वह एक सक्रिय और बुद्धिमान व्यक्ति थे. उन्होंने विभिन्न छोटी और बड़ी व्यावसायिक परियोजनाओं को अपनाया और उन सभी में सफल रहे. एक किशोर के रूप में उनके पास अपने प्रयासों के परिणामस्वरूप बहुत अधिक पैसा था.

बड़े होने के बाद, उन्होंने अपने माता-पिता की पोस्ट-ग्रेजुएशन करवाने की इच्छा को ठुकराते हुए अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया. यह व्यवसाय भी फलता-फूलता रहा, क्योंकि उन्होंने दिन-रात काम किया. वह अपने व्ययसाय को आगे ले जाने के लिए बहुत उत्सुक थे और पूरे जूनून के साथ उसमे लगे हुए थे; जब तक की उन्हें चामुंडी पर्वत पर एक आद्यात्मिक अनुभव नहीं हुआ था.इस अनुभव ने उनके आध्यात्मिक जीवन को आकार दिया और ईशा फाउंडेशन की स्थापना की. वर्तमान में सद्गुरु को ईशा फाउंडेशन के संस्थापक के रूप में जाना जाता है, जो एक ऐसा संगठन है जो आध्यात्मिक जागृति और सामाजिक कार्य को बढ़ावा देता है. सद्‌गुरु को उन पुस्तकों के लिए भी जाना जाता है जो उन्होंने लिखी हैं. वह एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्पीकर(International Speaker) भी हैं.

आध्यात्मिक जीवन
सदगुरु ने लोगों को योग और प्राणायाम सिखाने और उस अनुभव को साझा करने का फैसला किया जो उनके पास था. इस उद्देश्य के साथ, सद्गुरु ने 1992 में ईशा योग केंद्र(Isha yoga center ) की स्थापना की. आज सद्गुरु के भारत में और भारत के बाहर लाखों अनुयायी हैं. लोग अपनी आध्यात्मिकता का पता लगाने के लिए ईशा योग केंद्र आते हैं. ईशा योग केंद्र का सबसे आकर्षक हिस्सा ध्यानलिंगम है.

ध्यानलिंगम की स्थापना करना सद्गुरु का सपना था. ध्यानलिंगम के बारे में कहा जाता है कि इसके चारों ओर एक शानदार ऊर्जा है जिस कारण लोग यहाँ ध्यान लगा सकते हैं. Isha yoga center क जरिये Isha foundation भी शुरू हुआ जिसने दुनिया भर में कई और योग केंद्र खोले. आने वाले समय में कई और ईशा फाउंडेशन पाठ्यक्रम ऑनलाइन उपलब्ध होने की उम्मीद है.

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