बचपन में ही खोयी थी दोनों आँखे, लोग बोले आश्रम में छोड़ो, 608वीं रैंक हासिल कर बनें IAS अधिकारी

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हर कोई जीवन में सफल होना चाहता है. लेकिन सफलता हासिल करना आसान नहीं होता क्योंकि जीवन में कई संकट सफलता की राह में रोड़ा बन जाते हैं. लेकिन जो इन विपत्तियों पर विजय पाने में सफल हो जाता है वही सच्चा योद्धा माना जाता है. आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी जानने जा रहे हैं जिसका जीवन संकटों से भरा रहा. क्योंकि बचपन में उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी. इसलिए लोग परिवार को सलाह देंगे कि उसे आश्रम में छोड़ दें. लेकिन परिवार ने उनका पालन-पोषण किया, वही लड़का जो बड़ा हुआ आज आईएएस अफसर बन गया है. आइए जानते हैं उनकी जीवन यात्रा..

यह दोनों आंखों के अंधे राकेश शर्मा के संघर्ष की कहानी है. अंधे होते हुए भी राकेश ने एक महान अधिकारी बनने का सपना देखा. और सिर्फ सपने देखना ही नहीं, बल्कि उसे पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करना. राकेश जब 2 साल के थे तभी उनके जीवन में मुसीबतें आने लगीं। वह संकट छोटा नहीं था. इसने राकेश की आंखें छीन लीं.

राकेश, जिनकी जन्म के समय दृष्टि अच्छी थी, 2 साल की उम्र में एक ड्रग रिएक्शन से अंधे हो गए थे. उसकी हालत खराब हो गई थी. उसकी हालत देखकर लोगों ने उसके परिवार को उसे एक आश्रम में छोड़ने की सलाह दी. लेकिन परिवार ने लोगों की नहीं सुनी। परिवार ने उनका साथ दिया और उन्हें बड़ा और छोटा बनाया.

राकेश शर्मा हरियाणा के भिवानी जिले के एक छोटे से गांव सांवड़ के रहने वाले हैं. वह पिछले 13 साल से नोएडा सेक्टर 23 में रह रहा है. राकेश का बचपन काफी तनावपूर्ण रहा. उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उसे सामान्य जीवन जीने के लिए नियत नहीं किया गया था. उनकी दोनों आंखों की रोशनी खोने के बावजूद उनके परिवार ने बड़े साहस और आत्मविश्वास के साथ उनकी देखभाल करना जारी रखा. यह कभी नहीं टूटा. परिवार ने उसे एक सामान्य बच्चे की तरह पाला और उसकी हिम्मत बनाए रखी.

राकेश का बहुत इलाज किया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. राकेश जब 2 साल के थे, तब उनकी आंख में ड्रग्स की वजह से रिएक्शन हुआ था. परिजनों की लाख कोशिशों के बाद भी वह ठीक नहीं हो सका. कई जगह इलाज किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. राकेश के इस रिएक्शन से उसकी दोनों आंखें पूरी तरह से बेकार हो गईं. वह बिल्कुल नहीं देख सकता था.

लेकिन राकेश ने कुछ अलग करने की ठानी. दोनों आंखें गंवाने के बावजूद उन्होंने कभी पढ़ाना नहीं छोड़ा. वह लगातार पढ़ाई कर रहा था. राकेश का कहना है कि लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें सामान्य बच्चों के स्कूल में प्रवेश नहीं मिला. उन्हें नेत्रहीनों के लिए एक विशेष स्कूल में जाने के लिए मजबूर किया गया था. यह सिलसिला 12वीं तक ऐसे ही चलता रहा. उन्होंने ब्रेल लिपि में अपनी शिक्षा जारी रखी.

माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद राकेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया. इस विश्वविद्यालय में राकेश शर्मा को बहुत कुछ सीखने को मिला. वहां की गतिविधियों और शिक्षा और दोस्तों के प्रोत्साहन ने न केवल उन्हें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को सीखने में मदद की बल्कि उन्हें कुछ बड़ा करने की इच्छा भी पैदा की.

इस विश्वविद्यालय में पढ़ते समय राकेश ने यूपीएससी के बारे में सुना. उन्होंने यूपीएससी करने का भी फैसला किया. इसके बाद उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी. राकेश ने बहुत मेहनत की. उनकी मेहनत का फल उन्हें 2018 में मिला. दोनों आंखों के अंधे राकेश ने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईएएस बन गए. यूपीएससी में उन्हें 608वां रैंक मिला था. उसकी सफलता में राकेश के माता-पिता का बहुत बड़ा हाथ है. राकेश ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को भी दिया है. राकेश की मेहनत और अंधे होने के बावजूद उसे पढ़ाकर कलेक्टर बने उसके माता-पिता को सच में सलाम.

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