अगर घड़ी का नाम लेते है तो फिर सभी के दिमाग में एचएमटी का नाम अपने आप आ जाता है. अगर किसी घड़ी का नाम एचएमटी के बाद आता है तो वह है सिर्फ टाइटन. आज टाइटन ऐसी कंपनी बन गई है जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की पसंद बनी हुई है. तो आइए जानते हैं भारत की सबसे लोकप्रिय घड़ी कंपनी टाइटन की भारत में शुरुआत किस तरह से हुई.
किस तरह शुरू हुई टाइटन
बात 1980 के दशक की है जिस समय भारत में एचएमटी घड़ियाँ बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थीं. एचएमटी भारत सरकार के अधीन एक कंपनी थी. एचएमटी का पूरा नाम हिंदुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड था. इस कंपनी की शुरुआत साल 1953 में हुई थी. मतलब आजादी के 5 साल बाद.
टाइटन कंपनी का इतिहास
एचएमटी घड़ियों के मामले में बहुत लोकप्रिय थी मगर वे लंबे समय से मशीन आधारित एनालॉग घड़ियां बना रही थीं. यह भारत में वह दौर था जब विदेशों से लाई गई अधिकांश घड़ियों की तस्करी और बिक्री भारत में की जाती थी. इस दौरान टाटा ग्रुप के सेंट्रल मैनेजमेंट कैडर में काम करने वाले जेरेक्स देसाई कंपनी के लिए नए बिजनेस की तलाश में थे. तभी उन्हें भारत में घड़ियां बनाने का आइडिया आया.
इस तरह से शुरुआत हुई टाइटन की
टाइटन को शुरू करने के लिए टाटा ग्रुप ने क्वेस्टर इन्वेस्टमेंट नाम की एक छोटी सी कंपनी बनाई. इस कंपनी को टाटा ग्रुप से अलग रखा गया था. क्वेस्टर इन्वेस्टमेंट और तमिलनाडु इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने मिलकर टाइटन नाम की कंपनी की शुरुआत करी और घड़ियाँ बनाने लगे. इसके बाद जब कंपनी ने ठीक से काम करना शुरू किया तो क्वेस्टर इन्वेस्टमेंट को टाटा ग्रुप ने खरीद लिया और टाइटन कंपनी टाटा ग्रुप के पास आ गई थी.
टाइटन के अन्य ब्रांड
शुरुआत में टाइटन कंपनी ने केवल घड़ियाँ बनाईं थी और उनसे अच्छी खासी कमाई भी करी थी. मगर अब समय के साथ सब कुछ बदल गया है. शुरुआत में कंपनी इससे अच्छी खासी कमाई करती थी, लेकिन अब घड़ी की कमाई का 10 फीसदी ही टाइटन के कुल रेवेन्यू में रह गया है. टाइटन अभी अपने अन्य ब्रांडों और उत्पादों के माध्यम से अच्छी कमाई कर रहा है.
टाइटन आज के समय में बहुत बड़ी कंपनी बन चुकी है. इसके तहत कई ब्रांड भी हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज घड़ी बनाने वाली कंपनी टाइटन घड़ियों से नहीं बल्कि अपने ज्वेलरी सेगमेंट से काफी अच्छी कमाई कर रही है. फिलहाल 20 फीसदी से ज्यादा रेवेन्यू सिर्फ ज्वैलरी सेगमेंट से आता है.