हमने सुना है कि भारत के प्रधानमंत्री चाय बेचते थे. एक चाय बागान से भारत के प्रधान मंत्री तक की अपनी यात्रा के दौरान उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा. आज हम चाय के साथ एक ऐसी लड़की की कहानी देखने जा रहे हैं जिसके लिए देश नतमस्तक है. उत्तराखंड की यह महिला चाय-सब्जी की छोटी सी दुकान चलाती है. लेकिन चायवाली के छोटे भाई एक बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
हम जिस महिला की बात करने जा रहे हैं वह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कुठार गांव की रहने वाली शशि देवी है. शशि के भाई आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. जी हां, आपको यकीन नहीं हो रहा है लेकिन शशि देवी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथजी की बहन हैं. शशि योगी की बड़ी बहन हैं. वह योगीजी से 6 साल बड़ी है
शशि अपने पति के साथ चाय और भज्या होटल चलाती हैं. इनका एक बेटा और दो बेटियां हैं. उनकी चाय की दुकान ऋषिकेश में है. दरअसल ऋषिकेश शशि के ससुर हैं. उनके पति का नाम पूरन सिंह पायल है. वह ग्राम पंचायत के सरपंच भी रह चुके हैं. चाय की दुकान के अलावा उनका नीलकंठ मंदिर के पास एक लॉज भी है.
नीलकंठ मंदिर के पास उनकी चाय की दुकान है. उनकी दूसरी चाय की दुकान भुवनेश्वरी मंदिर (पार्वती मंदिर) के पास है. इस दुकान में वे चाय भजिया के अलावा प्रसाद भी बेचते हैं. इस बारे में बात करते हुए भाई शशि देवी का कहना है कि योगी आदित्यनाथजी का असली नाम अजय बिष्ट है. जब वह सेवानिवृत्त हुए, तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया.
जब शशि देवी अपने भाई के साथ घर पर रहती थीं, यानि योगियों के साथ उन्हें हाथ का बना खाना खिलाती थीं. योगियों ने भी इसे प्यार किया. लेकिन जब से योगीजी ने संन्यास लिया है, तब से उसने अपनी बहन के हाथ का भोजन कभी नहीं चखा है. इस पर शशि को खेद है. शशि देवी आखिरी बार अपने भाई से 11 फरवरी, 2017 को मिली थी. यह वही दौरा था जब योगी आदित्यनाथजी उपदेश देने उनके क्षेत्र में आए थे.
शशि कहते हैं कि जब योगीजी उनके पास आते हैं तो वे शशि के बच्चों से बहुत बातें करते हैं लेकिन बड़ों से नहीं. शशि देवी चाहती हैं कि उनका भाई उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के लिए भी कुछ बड़ा करे. वह पहाड़ी लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं. भाई के मुख्यमंत्री होने के बावजूद यह बहन स्वाभिमान की वजह से सादा जीवन जी रही है. उनके स्वाभिमान को सलाम.
योगीजी ने घर छोड़कर लिया था संन्यास-
योगी आदित्यनाथजी का जन्म 5 जून 1972 को गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ था. योगीजी के सन्यास लेने के बाद, वह गोरखनाथ मंदिर में महंत अविद्यानाथ की गद्दी पर बैठा. महंत अविद्यानाथ 4 बार सांसद रहे. उनकी जगह योगीजी पहली बार 1998 में 26 साल की उम्र में सांसद बने थे. इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद उनका नाम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए आया और वे मुख्यमंत्री बने.