मां के साथ चूड़ियां बेची, पिताजी ने शराब पर खर्च किए पैसे; लड़का आज देश का टॉप IAS अधिकारी है

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मां के साथ 10 साल की उम्र तक चूड़ियां बेचने वाले लड़के की कामयाबी सभी के लिए काफी प्रेरणादायक है. आज लड़के को देश के सर्वोच्च रैंकिंग वाले आईएएस अधिकारियों में से एक के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर संघर्षों से भरा है.

मां-बेटा दिन भर चूड़ियां बेचते थे, पिता अपनी कमाई शराब पर खर्च करते थे. लड़के ने दूसरी बार की रोटी के लिए अपना संघर्ष जारी रखा.

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बार्शी तालुका के एक छोटे से गाँव महागाँव में जन्मे रमेश घोलप (RAMESH GHOLAP IAS) आज भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक जाना-माना चेहरा हैं. रमेश का बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता. दो रोटियों के लिए मां-बेटा दिन भर चूड़ियां बेचते थे, लेकिन पिता उससे वसूले गए पैसों से शराब पीते थे. मेरे पिता की साइकिल मरम्मत की एक छोटी सी दुकान थी, जो कुछ समय के लिए भोजन उपलब्ध कराती थी. खाने के लिए खाना नहीं, रहने के लिए घर नहीं और पढ़ने के लिए पैसे नहीं, इससे बड़ा संघर्ष और क्या हो सकता है?

रमेश अपनी मौसी के इंदिरा आवास पर अपनी मां के साथ रह रहा था. संघर्ष का यह सिलसिला जारी रहा. पिता की मौत मैट्रिक की परीक्षा से एक माह पहले हो गई थी. इस झटके ने रमेश को पूरी तरह हिला दिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी और मैट्रिक की परीक्षा दी और फिर भी उसे 88.50% अंक मिले. मां ने अपने बेटे की पढ़ाई जारी रखने के लिए सरकारी कर्ज योजना के तहत गाय खरीदने के लिए 18,000 रुपये का कर्ज भी लिया.

रमेश अपनी मां से कुछ पैसे लेकर आईएएस अफसर बनने का सपना लेकर पुणे पहुंचा. यहां उन्होंने अपनी मेहनत शुरू की। उसने सारा दिन काम किया और उससे पैसे इकठ्ठे किए और फिर पूरी रात पढ़ाई की. पैसे जुटाने के लिए वह दीवारों पर नेताओं के बैनर टांग देता था, दुकानों में काम करता था. रंगारंग कार्यक्रम, शादी आदि करता था. वह पहले प्रयास में असफल रहा, लेकिन वह दृढ़ रहा. 2011 में फिर से यूपीएससी की परीक्षा पास की और 287वां स्थान हासिल किया. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सेवा परीक्षा में भी पहला नंबर हासिल किया.

जिस दिन अफसर बनेगा उसी दिन उसने गांव जाने का मन बना लिया था. आखिर दिन निकल ही गया। 4 मई 2012 को वह पहली बार अफसर के तौर पर अपने गांव आए थे. जिस गली में चूड़ियाँ बिकती थीं, उसी गली में एक अधिकारी के रूप में आने पर ग्रामीणों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. उन्हें अब तक झारखंड के विभिन्न हिस्सों में एक उच्च पद पर नियुक्त किया गया है.

अपने बुरे समय को याद करते हुए रमेश कहते हैं कि आज जब भी वह किसी असहाय व्यक्ति की मदद करते हैं तो उन्हें अपनी मां का हाल याद आता है जब वह पेंशन के लिए अधिकारियों का दरवाजा खटखटाती थीं. रमेश अपने बुरे वक्त को कभी नहीं भूलते और जरूरतमंदों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इतना ही नहीं, रमेश ने 300 से अधिक सेमिनारों का आयोजन किया और युवाओं को प्रशासनिक परीक्षाओं में सफल होने के टिप्स भी दिए.

रमेश घोलप की यात्रा उन लाखों युवाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन गई है जो सिविल सेवा में शामिल होकर देश और समाज की सेवा करना चाहते हैं.

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