विदेश से आईटी की नौकरी छोड़कर गांव आयी महिला, शुरू किया बिजनेस; आज है करोड़ों की मालकिन

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इंजीनियरिंग अध्ययन को सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी अध्ययनों में से एक माना जाता है. पहले तो एंट्रेंस के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है और फिर कॉलेज में दिन-रात एक करके पढ़ाई करनी पड़ती है. इतनी मेहनत करने के बाद मिलने वाली नौकरी से शायद स्टेटस तो उस व्यक्ति को मिल जाता है.

लेकिन बहुत से लोग आंतरिक सुख और संतुष्टि की तलाश में रहते हैं. बहुत से लोग सोचते हैं कि इस रास्ते पर चलना बेहतर है तो कुछ लोग सब कुछ छोड़कर बिल्कुल नया रास्ता चुन लेते हैं.

ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है जयंती कठाले की, जिन्होंने अपने क्षेत्रीय व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए एक नई शुरुआत करने के लिए विदेश में इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ दी और आज उन्होंने 14 रेस्टोरेंट की ग्लोबल चेन खोल ली है.

इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी

जयंती कठाले ने महाराष्ट्र के पारंपरिक खाने को मशहूर करने के लिए आईटी कंपनी इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी. वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी और जयंती कठाले एक प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर कंपनी में काम करती होती थी और इस कंपनी में नौकरी करने की वजह से जयंती को विदेश घूमने का काफी मौका मिला.

‘पूर्णब्रह्मा’ की स्थापना की

जयंती कठाले ने कहा कि एक बार जब वह फ्लाइट से ऑस्ट्रेलिया जा रही थीं, तो उस समय उनके पति को खाने में कुछ भी शाकाहारी नहीं मिल रहा था. इसके बाद उन्होंने अपनी मंशा बिल्कुल तय कर ली कि उन्हें शाकाहारी भोजन से जुड़ा काम करना है.

ऑस्ट्रेलिया में लगभग 2 साल काम कर लेने के बाद उन्होंने इसे छोड़ने का निर्णेय कर लिया. जयंती ने नौकरी छोड़ने के बाद ‘पूर्णब्रह्मा’ की स्थापना करी इस रेस्टोरेंट चेन में महाराष्ट्र में बने हर तरह के शाकाहारी व्यंजन परोसे जाते हैं. श्रीखंड पुरी से लेकर पूरन पोली तक और सभी प्रकार के पारंपरिक मराठी भोजन ‘पूर्णब्रह्मा’ में परोसे जाते हैं.

जयंती ने घर पर बने हुए मोदक के ऑर्डर से सबसे पहले शुरुआत करी थी और फिर जल्द ही उन्होंने बैंगलोर में पूर्णब्रह्मा नाम का अपना पहला रेस्टोरेंट भी खोल लिया. शुरुआत में काफी ज्यादा उनको आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा था, मगर उन्होंने हार नहीं मानी. और आज उनकी रेस्टोरेंट चेन मुंबई, पुणे, अमरावती से लेकर ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन तक है.

प्रत्येक कर्मचारी को समान वेतन दिया जाता है

पूर्णब्रह्मा काफी मायनों में अलग है. जयंती के मुताबिक यहां काम करने वाले हर कर्मचारी को समान वेतन दिया जाता है. यहां हर कर्मचारी को हर घंटे वॉटर थेरेपी के तहत पानी पीना पड़ता है और ग्राहक को खाना परोसने से पहले खुद खाना होता है.

सबसे खास बात तो यह है कि ग्राहक को सारा खाना खाने पर 5 फीसदी की छूट दी जाती है. वहीं, खाना बीच मे छोड़ने पर 2 फीसदी चार्ज लगता है. ऐसे में लोग खाना बर्बाद नहीं करते हैं. आज जयंती कठाले के होम शेफ मोदक के भी 48 केंद्र हैं.

जयंती कठाले न केवल महिलाओं के लिए एक मिसाल है बल्कि सभी के लिए अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा भी है.

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