जीवन में जितना बड़ा संघर्ष होगा, एक दिन उतनी ही बड़ी सफलता मिलेगी. यह आपके प्रयासों के साथ होना चाहिए. जीवन में कभी-कभी ऐसा समय आता है जब सब कुछ खत्म हो जाता है. लेकिन ऐसे में अगर हम सकारात्मक मानसिकता रखें तो संघर्ष को दूर किया जा सकता है. ऐसा ही एक गांव की एक महिला ने किया है. जब उसने अपने द्वारा चुने गए व्यवसाय को देखा तो लोग शुरू में उस पर हँसे. लेकिन आज वह उसी व्यवसाय से लाखों रुपये सालाना कमा रही हैं. आइए जानते हैं उनकी सक्सेस स्टोरी…
वैशाली बालासाहेब घुगे. उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर तालुका के अंदुर गांव की एक साधारण महिला. वैशाली ने 9वीं तक पुणे में पढ़ाई की. नौ वर्ष की आयु में पिता ने विद्वान पुत्र को देखकर विवाह कर दिया. लड़के के पास नौकरी नहीं थी लेकिन उसके पिता को उम्मीद थी कि शिक्षा से उसे नौकरी मिल जाएगी और लड़की खुश रहेगी. वैशाली के ससुर का 20 लोगों का बड़ा परिवार था.
पति को कोई नौकरी नहीं लगी. इसके अलावा, वह एक नशे की लत पर चला गया था. व्यसन के कारण परिवार में कलह होता है. वैशाली और उनके पति अलग हो गए थे. वैशाली बच्चों और उनके पति की देखभाल के लिए जिम्मेदार थी. वैशाली अपने शराबी पति से बहस करने लगी. उसका पति अक्सर उसे बच्चों के साथ घर से निकाल देता था. वह कई रातों से घर से बाहर रहें. फोन आने परवह अपनी मां से कहती थी कि वह खुश है. क्योंकि उनके पिता का देहांत शादी के 6 महीने के भीतर ही हो गया था. इसलिए, 4 छोटे भाइयों के साथ-साथ दादा-दादी के लिए माँ जिम्मेदार थी. वैशाली उसे सच बताकर उसे चोट नहीं पहुँचाना चाहती थी.
वैशाली ने हालांकि, स्थिति का सामना करने का फैसला किया. पति उसे काम के सिलसिले में पुणे ले आया. उसके साथ छोटे-छोटे बच्चे भी थे. वैशाली ने 3 साल तक हडपसर की एक नर्सरी में काम किया. दोनों की तनख्वाह में से कोई पैसा नहीं बचते थे. बच्चे जब छोटे थे तो वैशाली अपने पति के साथ गांव लौट आई. जब गांव आए तो उनके पास रहने के लिए घर नहीं था. पाँच लकड़ी का घर बनाया, और वो वह रहने लगे.
ससुराल वालोंने ने एक भैंस दी थी. वहीं वैशाली ने सभी खेतों में सब्जियां लगाना शुरू कर दी. सब्जी आई तो बेचने के लिए कठिन परिस्थितियो का सामना करना पड़ा. वह सब्जी बेचने के लिए गांव में चिल्लाना नहीं चाहती थी. फिर वह छोटों को चिल्लाने के लिए अपने साथ ले जाती. इसके बदले वह उन्हें बिस्किट का एक टुकड़ा देती थी. एक दिन सब्जी बेचते समय मैं एक महिला के घर रुक गयी क्योंकि बारिश हो रही थी. उसने चाय बनाई. परिचय करवाया गया था. महिला ने वैशाली को 50 रुपये प्रतिमाह स्वयं सहायता समूह में डालने की सलाह दी. वह शिक्षिका की पत्नी थी.
एक समाय गांव में तूफान ने घर के सारे चिट्ठियाँ उड़ा दीं. संक्षेप में, वैशाली और 8 अन्य बच गए. अब उसके मन में घर बनाने का विचार आया. पैसे लेने वाले समूह ने उसे 5,000 रुपये की पेशकश की. उसने 5,000 रुपये लिए और नींव खोदी और सीमेंट कंक्रीट के दो कमरे बनाए. वैशाली संकट से घिर गई लेकिन उसने हार नहीं मानी. वह सेल्फ एजुकेशन इंस्टीट्यूट से संबद्ध थीं. वहां उन्होंने कृषि व्यवसाय में प्रशिक्षण प्राप्त किया.
वैशाली ने कृषि व्यवसाय की ओर रुख करने का फैसला किया क्योंकि उनके पास खेती काम थी. उसने अपना डेयरी व्यवसाय अपनी भैंस के साथ शुरू किया था. उस प्रशिक्षण में उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रशिक्षण लिया. जब वह घर पहुंची तो उसने घर में वर्मी कम्पोस्ट बेड बनाया. उस समय 2013-14 में भयंकर अकाल पड़ा था. वैशाली ने उस सूखे के दौरान केसर के आम के पेड़ लगाए थे. खाद के कारण उसका पेड़ सूखे से बच गया. यह बात वह अपने पास आने वाले किसानों को दिखाती थी.
लेकिन जब उसने पहली बार क्यारियां बनाईं और गोबर की खाद की छानबीन की, तो पड़ोसी उसकी हंसी उड़ा रहे थे. लोग उसे बताते थे कि प्रति किलो खाद कहां बेचनी है और आने जाने वाले लोग हसने लगे. लेकिन वैशाली अपने काम पर ध्यान देती रही. वर्मी कम्पोस्ट से 10 पशुओं को अपने ही खेत में पाला. सूखे के दौरान अच्छी खेती की. इसके बाद सफलता की कहानी एग्रोवन तक आई. उस समय पूरे महाराष्ट्र में वैशाली का नाम छाया था. उनके मार्गदर्शन के लिए उन्हें पूरे महाराष्ट्र से फोन आने लगे.
एक समय था जब वैशाली अपने ही बच्चों को 5 रुपये का बिस्किट पूड़ा नहीं दे पाती थी. आज उनके खेत में एक बार में 10 टन वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन होता है. वैशाली को साल भर में इसकी बिक्री से 5 लाख रुपये का शुद्ध लाभ होता है. विभिन्न छोटे पोल्ट्री फार्म भी आज ऐसा करते हैं. उन्होंने महिलाओं को काम देने का भी फैसला किया और कई महिलाओं को पापड़ बनाने और दाल बनाने का काम दिया. आज वैशाली अच्छे घर में रहती है. 5 पत्रों के घर में रहने वाली वैशाली ने आज अपने नए घर में 50 किसानों के लिए ट्रेनिंग हॉल बनाया है.