घरका एक निकम्मा लड़का. जिसे उसके पिता भी बर्बाद समझते थे.स्कूल में भी ध्यान नहीं देता था. लेकिन उन्हें आज जीवन का एक उद्देश्य मिल गया. लेकिन आखिर में वो अपने लक्ष्य तक पहुँच गए और वही 12वीं पास लड़का उसी सड़क पर मर्सिडीज चलाता है जहाँ वह रिक्शा चलाता था. यह सफलता हासिल करना इतना आसान नहीं है जितना लगता है. लेकिन अरुण पडुले ने इसे संभव कर दिखाया है. आइए जानें अरुण की सफलता की कहानी.
जिस लड़के की हम बात कर रहे है उसका नाम है अरुण सुभाष पाडुळे. जो महाराष्ट्र के पुणे के चिखली में रहने वाला.अरुण पढाई में बहोत नाजुक थे. उन्हें छठी तक एबीसीडी भी नहीं आती थी. अरुण के पिता एक रिक्शा को चलाते थे. लेकिन उस पर घर नहीं चल रहा था. तभी एक महाराजा सब्जी बेचने की सलाह दी. उन्होंने चिखली के कस्तूरी बाजार में सब्जियां बेचना शुरू किया. अरुण भी मां के साथ ठेले पर सब्जी बेचता था. जब वह स्कूल से घर आता तो चिल्लाता था और सब्जी बेचता था. उसे अपने काम पर शर्म आती थी, क्योंकि स्कूली बच्चे उसे आते जाते देखते थे
लेकिन अरुण जानता था कि ऐसा करने से ही उसका घर चलेगा. चीजें थोड़ी बदल रही थीं. अरुण की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पिता ने उसके लिए दिवाली के दिन कपड़े खरीदे लेकिन उन्होंने उसे अपने जूते दे दिए क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. वह शुरू में जिला परिषद स्कूल में थे जहाँ शिक्षक कभी तो स्कूल आते थे. बाद में उनकी मां ने उन्हें एक अच्छे स्कूल में भेज दिया. उनकी पढ़ाई में प्रगति सातवीं से शुरू हुई. 10 वि कक्षा में वह स्कूल में तीसरे स्थान पर आया. तब घरवालों ने सोचा कि जो होशियार है और एक दिन कुछ बढ़ा करेगा
11 वि में उन्हें वाडिया नामक एक प्रतिष्ठित कॉलेज में उनका नंबर लग गया. वह सरे अमीरों के के बच्चे थे. रिक्शा चालक का बेटा अरुण साधारण कपड़े और चप्पल पहने कर गया था. अरुण केवल अंग्रेजी में कच्चा था. अन्य सभी मामलों में चतुर था. वह अपने पिता से किताबों के लिए पैसे मांगने के लिए आगे-पीछे देखता था. फिर 11वि 53% के साथ पास हुए. बाद में, उसकी माँ ने उसे बारहवीं कक्षा में अच्छी कक्षा देने के लिए इधर उधर से पैसे जमा कर ट्यूशन लगाई
जब वह बारवी में थे तब एक दिन पिता बाहर गए थे. तभी अरुण अपने पिता की रिक्शा निकली और वह लोगों को रिक्शा में छोड़ने लगा. उसने दिनभर रिक्शा चलाई. पुरे दिन में उसने 7-800 रुपये का धंदा किया. उनके पिता के कई दोस्तों ने उन्हें देखा था. अगले दिन जब पिता घर आए तो उनको पता चला.जब पिता अरुण के सामने आए, तो उन्होंने अपने पिता को 800 रुपये दिए और कहा, “मैंने कल यह व्यवसाय किया था.” उस वक्त पापा की आंखों में आंसू थे. अरुण ने भी सोचा कि अगर कुछ नहीं हुआ तो हम यह धंधा कर सकते हैं.
फिर इसकी बारवी हुई. 50-55 प्रतिशत अंकों के साथ पास किया. पिता को लगा कि बेटा पढ़ाई में आगे कुछ नहीं कर सकता. फिर अरुण 200 रुपये की रोज की नौकरी करने पने दोस्तों के साथ काम पर जाने लगा. पापा ने जो टेंपो ली थी वह भी अरुण रात में चलाता था. बाद में उन्हें उस जगह पर मीटर बदलने का ठेका मिला. यह अच्छा पैसा कमाने लगा. उसने अपना पहला टेम्पो और दूसरा नया टेम्पो लिया और उसे एक कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर लगा दिया
उसी समय उनका डिप्लोमा चल रहा था. उसने अपने पिता से कहा कि वह शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता. मीटर का काम खत्म होने के कुछ महीने बाद फिर से अपना टेंपो चलाने लगा. अपने खाली समय में वह कंपनी में जाकर बैठते और देखते कि क्या हो रहा है. वह कंपनी रिक्शा की सीट बनाई जाती थी. वह वहा का मालिक यह कहते हुए भुगतान नहीं कर रहा था कि वह घाटे में है. इसके बाद वहां के मालिक ने कंपनी को बेच दिया. अरुण ने खुद मालिक से पूछने की हिम्मत की और पूछा “मेरे पास 4-5 लाख हैं और क्या मैं बाकी किश्तों में चुकाता हूं.” मालिक तैयार था और अरुण ने वही कंपनी खरीद ली.
घर पर बस इतना पता था कि वह टेंपो का ड्राइवर है. उसने घर पर और कुछ नहीं कहा. उनका बड़ा भाई भी रिक्शा चलता था, इसलिए घरवालोंको अरुण से ज्यादा उम्मीद नहीं थी, यह सोचकर कि वह भी ड्राइवर बन गया. उसने सारा काम देखकर सीखा था. कंपनी अच्छी चली और पहले साल में आमदनी 20,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक पहुंच गई. हालांकि, उसने अपने पिता को कुछ नहीं बताया.
पैसा अच्छा आने की वजह से वह कपडे भी अच्छे पहन रहा था. इस वजह से पिता को लगता की यह टेम्पो चलाकर शोक पुरे कर रहा है. दूसरे दिन अरुण अपने पिताजी के साथ बैठे और उनसे पूछा की आपका कहा कहा कितना कर्जा है. 7-8 लाख रुपये तक था. पिताजी ने कहा इसमें से थोड़ा बोहोत थोड़ कर्जा चूका दे
अरुण, अपनी नई फोर व्हीलर और अपने पिता के साथ, सारे बैंक गया और सभी ऋणों का भुगतान किया. उसने एक दिन में 7-8 लाख रुपये का भुगतान किया. पिता से कहा गया कि शाम तक कोई सवाल न करें. फिर हमने एक होटल में डिनर किया. फिर वह अपने पिता को कार में बिठाकर अपनी कंपनी में चला गया. तब मैंने अपने पिता से कहा कि मैंने यह कंपनी स्थापित की है. और यहींसे मैंने सब कुछ कमाया है.
पिता को विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जब सारे दस्तावेज दिखाए गए तो पिता की आंखों में आंसू आ गए. मैंने अपने पिता को भी कार के बारे में बाद में बताया. पिता के हाथों कार की पूजा की. जिस सड़क पर अरुण और एक वक्त पर पिता की रिक्शा चलाते थे, उसी रोड पर आज लाखों रुपयों की महंगी मर्सिडीज बेंज कारों में यात्रा करते हैं.