३ बार सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद रिश्तेदार उड़ाते थे मजाक, 824वीं रैंक हासिल कर बनें IPS अधिकारी

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फिल्में भले ही कल्पना पर आधारित हों, लेकिन कुछ मायनों में वे आम आदमी के जीवन से जुड़ी होती हैं. इसलिए जब हम कोई फिल्म देखते हैं तो उसे अपने जीवन से जोड़ने का प्रयास करते हैं. इतना ही नहीं फिल्मों की मदद से आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.

आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने सनी देओल की फिल्म इंडियन से प्रेरणा ली कि वह आईपीएस अफसर बन गया। अपने सपने को पूरा करने के लिए इस युवक ने छोड़ी थी एक नहीं तीन सरकारी नौकरी, आइए जानें उनकी सफलता की कहानी.

राजस्थान के जयपुर से कुछ किलोमीटर दूर श्यामपुरा गांव के मनोज रावत आज एक आईपीएस अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन पद प्राप्त करना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था. मनोज रावत का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, इसलिए उन्होंने 19 साल की उम्र में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के रूप में काम करना शुरू कर दिया. लेकिन मनोज के बड़े सपने होने के कारण उसने 2013 में कांस्टेबल की नौकरी छोड़ दी.

दरअसल, मनोज सिपाही के रूप में काम करते हुए राजनीति विज्ञान में एमए कर रहे थे, इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कांस्टेबल की नौकरी छोड़ दी और कोर्ट में क्लर्क (एलडीसी) की नौकरी कर ली. हालांकि, मनोज रावत ने पढ़ाई जारी रखी और नौकरी छोड़ दी, जिसके बाद उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी.

सिविल सर्विस की तैयारी के दौरान मनोज तिवारी को CISF की नौकरी मिल गई लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया. दरअसल मनोज अपने मिशन के दौरान कोई सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने 3 नौकरी छोड़ दी और उनके करीबी लोगों ने उनके इस फैसले का कड़ा विरोध किया.

मनोज रावत को अपनी पढ़ाई पर पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखी और एक नौकरी से दूसरी नौकरी बदलते रहे. मनोज ने 2017 में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा दी थी, जिसमें उसे पूरे भारत में 824वां स्थान मिला था.

सामान्यत: UPSC में 824 रैंक प्राप्त करने पर IPS अधिकारी का पद नहीं मिलता, लेकिन मनोज अनुसूचित जाति के थे. इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति का आरक्षण मिलने के बाद 824 नंबर मिलने के बाद भी आईपीएस अधिकारी का पद मिला. IPS अधिकारी का पद पाने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 400 तक की रैंकिंग तक पहुंचना होता है.

मनोज रावत को अपने पूरे करियर में एक के बाद एक 3 सरकारी नौकरियां मिलीं और छोड़ दिया क्योंकि वह एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहते थे। दरअसल, मनोज रावत सनी देओल की भारतीय फिल्म से प्रेरित थे, जिसमें उन्होंने राज शेखर आजाद की भूमिका निभाई थी.

इस फिल्म में सनी देओल को एक सच्चे और ईमानदार आईपीएस अधिकारी की भूमिका निभाते देख मनोज रावत का आईपीएस अधिकारी बनने का सपना फूलने लगा. अपने सपने को पूरा करने के लिए मनोज ने अपनी तीन सरकारी नौकरी छोड़ दी और आखिरकार एक आईपीएस अधिकारी के रूप में पदभार संभाला.

मनोज रावत को भले ही अनुसूचित जनजाति आरक्षण के कारण आईपीएस अधिकारी का पद मिला हो, लेकिन इसमें उनकी मेहनत और लगन भी शामिल है. इतना ही नहीं, परीक्षा पास करने के बाद मनोज को 35 मिनट का इंटरव्यू देना था. अधिकारियों ने जहां उनसे भारत-चीन संबंधों, विदेश सेवा और आरक्षण सहित समकालीन ज्वलंत मुद्दों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे, वहीं मनोज ने अपनी समझ और ज्ञान के अनुसार सभी सवालों के जवाब दिए और साक्षात्कार पास करने में सफल रहे.

जब मनोज रावत ने अपनी पहली सरकारी नौकरी छोड़ी, तो उन्हें अपने रिश्तेदारों की आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा. ऐसे में जब उन्होंने एक के बाद एक 3 सरकारी नौकरी छोड़ी तो लोग उन्हें पागल समझने लगे. हालांकि इस सब में मनोज के माता-पिता इस फैसले में उनके साथ खड़े रहे, इसीलिए मनोज रावत ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है. एक साधारण परिवार से आने वाले मनोज रावत आज एक आईपीएस अधिकारी के पद पर तैनात हैं, जो युवाओं को उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करते हैं.

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