आज भी लड़कियां शिक्षा और नौकरी से वंचित रहती हैं. ऐसे कई परिवार हैं जहां लड़के को पढ़ाया जाता है और लड़की को बताया जाता है कि पढ़ लिखकर क्या करना है. लड़कियों को शिक्षित करने की दर बहुत कम है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. लेकिन लड़कियों ने अक्सर यह साबित कर दिया है कि वे किसी भी चीज में कम नहीं हैं. फिर चाहे वह शिक्षा हो या कुछ और. हम कई क्षेत्रों में लड़कियों के लाखों उदाहरण भी देखते हैं. आज हम एक ऐसी लड़की के सफर पर नजर डालने जा रहे हैं, जिसने डेयरी बिजनेस में ऊँची छलांग लगाई है.
निघोज अहमदनगर जिले के पारनेर तालुका का एक गाँव है. इस गांव में ढवण परिवार की श्रद्धा का नाम 21 साल की उम्र में देश के कोने-कोने में पहुंच गया है. श्रद्धा के पिता विकलांग हैं. भाई-बहन छोटे हैं. घर में कमाने वाला कोई और नहीं है. परिवार कुछ भैंसों पर निर्वाह करता था. माता-पिता घर पर कुछ भैंसों की देखभाल करते थे और दूध का एक छोटा सा व्यवसाय चलाते थे. श्रद्धा भी उनके काम में उनकी मदद करना पसंद करती थीं. उन्होंने भैंसों को पानी पिलाने से लेकर उनका गोबर निकालने तक का काम किया. उसने कम उम्र में दूध निकालना सीख लिया था.
जब वह 11-12 साल की थीं, तब उसने कारोबार संभालना शुरू किया. उसने शुरुआत में अपने पिता की मदद के लिए यह काम शुरू किया था. वह भी इस काम से प्यार करती है. श्रद्धा ने पिकअप चलाना भी सीखा. पहले तो उसे मोटरसाइकिल पर कैरेट रखक्र उस पर दूध ले जाने में शर्म आती थी, लेकिन धीरे-धीरे वह शर्मिंदगी दूर हो गई. साईकिल पर स्कूल जाने की उम्र में श्रद्धा मोटरसाइकिल पर दूध बेचने जाती थी. उनके काम की काफी तारीफ होती थी. नतीजतन, उसका उत्साह बढ़ गया. और उनका आत्मविश्वास भी काफी बढ़ गया था.
श्रद्धा अब डेयरी बिजनेस की एक्सपर्ट हैं. आज उसके पास 80 से अधिक भैंसें हैं. इसके अलावा उन्होंने अपनी भैंसों के लिए दो मंजिला खलिहान भी बनवाया है. इसी 2 मंजिला खलिहान से उनका दूध का कारोबार चलता है. यह नगर जिले का पहला 2 मंजिला खलिहान है. श्रद्धा के पिता ने उन्हें भैंस के बारे में अपने सभी अनुभव देकर उन्हें प्रशिक्षित किया है. श्रद्धा इतनी कुशल है कि वह एक कैन में दूध को देखकर ही बता सकती है कि वह कितने लीटर है. उसने शहर नहीं जाने का फैसला किया ताकि श्रद्धा डेयरी पर ध्यान दे सके और व्यवसाय बढ़ा सके.
श्रद्धा ने व्यवसाय को समय देने के लिए शहर में प्रवेश लिए बिना गांव निघोज में बीएससी की पढ़ाई की. श्रद्धा ने गाँव में ही अच्छी शिक्षा प्राप्त करके अपने कौशल में सुधार किया. आज श्रद्धा के खलिहान से 450 लीटर दूध निकलता है. पापा के छोटे से बिजनेस को इतना बड़ा बनाने के लिए काफी विश्वास की जरूरत थी. श्रद्धा ने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है. वह कहती हैं कि यह उनका समर्थन था जिसने इसे संभव बनाया. श्रद्धा को उनके भाई ने स्कूल से आने के बाद मदद की, तो उनके पिता =विकलांग थे और दूध निकालने में उनकी मदद करते थे. उसकी माँ भी लगातार खलिहान में काम करती थी.
वर्तमान दिनचर्या है सुबह जल्दी उठना, भैंस को धोना, दूध निकालना , दूध को डेयरी में ले जाना. इसके अलावा भैंसों के लिए भूसा लाना और उन्हें खिलाना भी श्रद्धा करती है. यह सब करके वह शाम को पढ़ाई भी करती हैं. उनके माता-पिता ही नहीं पूरे गांव को उन पर गर्व है. गांव के लोग श्रद्धा की सराहना करते हैं. उसने समाज के लिए एक अलग मानक स्थापित किया है क्योंकि उसने कम उम्र में एक लड़के की तरह इस जिम्मेदारी को निभाया है. आज श्रद्धा दूध से लाखो का कारोबार कर रही है.