जीवन में अक्सर अपने दो पैरों पर खड़ा होना मुश्किल होता है. परिवार सफलता के मुख्य स्तंभों में से एक है. खासकर पिता का सहयोग बहुत कीमती होता है. अगर अपना बचा गलती करता है, तो पिताउसे सुधारने में अपने बच्चे की मदद करते. लेकिन आज हम एक ऐसे उद्यमी से मिलने जा रहे हैं, जिसने दो साल की उम्र में ही अपने पिता की छत्रछाया खो दी थी. जिन्हें कभी रिश्तेदारों ने रेत में फेंक दिया था. वह युवा बाजार में नमकीन बेचने से लेकर 20 लाख रुपये की तनख्वाह वाली नौकरी तक का सफर तय करता है. उन्होंने उस उच्च भुगतान वाली नौकरी को बंद कर दिया और अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया जिसमें वे केवल 3 वर्षों में करोड़ों के कारोबार के साथ एक सफल उद्यमी बन गए.
यह पुणे जिले के इंदापुर तालुका के एक गांव में 10 बाय 10 के कमरे में रहने वाले रसोइए के बेटे प्रवीण कवितके की सफलता की कहानी है. प्रवीण की किस्मत में संघर्ष जन्म से ही था. दो साल की उम्र में, उन्होंने अपने पिता का साया खो दिया. तीन बच्चों की मां 29 साल की उम्र में विधवा हो गई थी. मां को पढ़ाई से प्यार था इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाया. उन्होंने 3,000 महीनों तक एक छात्रावास में रसोइया के रूप में काम किया और बच्चों की अच्छी देखभाल की.
मानो रिश्तेदारों ने उन्हें करना चालू किया. प्रवीण और 2 बहनें अच्छे स्कूलों में पढ़ रही थीं. उन्होंने अपनी मां की मदद के लिए मिर्च के डंठल की मशीन खरीदी. ये भाई बहन उस मशीन को चलाते थे. कम उम्र में ही प्रवीण को एक लड़की से प्यार हो गया और वह पढ़ाई में पिछड़ गया. 8 वि कक्षा में विफल रहे. फिर से एक महाराजा के माध्यम से उन्होंने जीवन में अपना मन फिर से स्वयं पर केंद्रित किया. अच्छे अंकों के साथ 10वीं पास की. बाद में वे लोगों की सलाह लेने पुणे गए. लोग उनकी मां से कहते थे कि अगर आपका बेटा पुणे चला गया तो हालत खराब हो जाएगी.
इंजीनियरिंग के बाद उसे 25 हजार की नौकरी मिली. मां के कष्टों को दूर करने का संकल्प लिया. वह सबसे पहले अपनी मां को पुणे ले आए. 2010 में एक झटका लगा था. सखी की बहन का निधन हुआ और उनकी बेटी की जिम्मेदारी प्रवीण पर आ गई. 23 साल की छोटी सी उम्र में जिम्मेदारी का बोझ उन पर आ गया. वह डिप्रेशन में भी चले गए थे. उसका वेतन बढ़ रहा था लेकिन वह संतुष्ट नहीं था. दोबारा नौकरी बदलकर उसे ज्यादा वेतन मिला. उसने 2015 में उस लड़की से शादी की, जिससे उसे स्कूल में प्यार हो गया था.
नौकरी के दौरान वह अलग-अलग स्टार्टअप शुरू करने की कोशिश करता था. वह 3 स्टार्टअप में फेल हो गया. वह अपना काम करते हुए यह काम कर रहा था इसलिए असफलता अधिक से अधिक आ रही थी. आगे वो पिता बनने वाला था. इसलिए जिम्मेदारी बढ़ती जा रही थी.
उसने अपनी पत्नी से बात की और फैसला किया कि वह कुछ दिनों के लिए आउट ऑफ़ स्टेशन काम करेगा. वह गुड़गांव शिफ्ट हो गया. वो वहां एक बिहारी लड़के के साथ रहता था. वह जिस कंपनी के लिए काम कर रहे थे, वह हेल्थकेयर सेक्टर में काम कर रही थी. तब प्रवीण को डॉक्टर बनने के अपने आधे-अधूरे सपने की याद आई. उन्होंने गुड़गांव से हेल्थकेयर साइंटिफिक की शुरुआत की.
उन्होंने अपनी बेटी के पहले जन्मदिन के बाद कंपनी की शुरुआत की. वह पुणे लौट आया था. उन्होंने 20 लाख रुपये की नौकरी छोड़ने का फैसला किया था. इतना बड़ा जोखिम उठाना आसान नहीं था. उन्होंने काम करना शुरू कर दिया. एक साल के लिए अपनी पत्नी से पूछा. लोग उनसे सवाल पूछने लगे. इतनी नौकरियां जाने के कारण लोगों का दिमाग खराब हो रहा था. उन्होंने अपनी बचत को धीरे-धीरे गिराकर कंपनी शुरू की. टीम बनाई. एक कर्मचारी और एक मालिक ने 10 बाय 10 कमरे से अपनी यात्रा शुरू की. आज उसी कंपनी का करोड़ों रुपये का कारोबार है.
प्रवीण की कंपनी डिजिटल हेल्थ और मेडिकल डिवाइसेज जैसे विभिन्न उत्पादों पर काम कर रही है. उनकी कंपनी 3 साल पुरानी है और आज यह करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी है. प्रवीण की कहानी हमें बताती है कि अगर आप बड़े सपने देखते हैं, तो दृढ़ रहें और कोशिश करते रहें.