हर बच्चा अपने माता-पिता के लिए खास होता है, उसके पैदा होते ही माता-पिता उसके माध्यम से अपने सपनों को पूरा करने के सपने देखने लगते हैं. अपना बच्चा कुछ बड़ा करें ऐसा हर माता पिता को लगता है. कई माता-पिता अपने बच्चे का डॉक्टर, इंजीनियर या कलेक्टर बनने का सपना देखते हैं. माता-पिता का यह सपना था कि उनका बेटा एक महान कलेक्टर बने.
मध्य प्रदेश में अनुभव के पिता अपने बेटे के लिए ऐसा ही सपना देख रहे थे. अपना बेटा बड़ा होकर अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगा और कलेक्टर बनेगा. लेकिन अनुभव कलेक्टर नहीं बने. हालांकि, अनुभव का अपना एक ऐसा सपना था, उनके परिवार ने उन्हें शिक्षा के लिए इंदौर भेज दिया. कॉलेज की दोस्ती के दौरान आनंद नायक उनके अच्छे दोस्त बन गए. दोनों साथ में पढ़ते थे. कॉलेज खत्म हुआ और आनंद अपने एक रिश्तेदार के साथ कारोबार करने लगा.
अनुभव भी ऐसा ही करना चाहते थे लेकिन उन्हें अपने पिता के सपने की वजह से यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली जाना पड़ा. जैसे-जैसे साल बीतते गए, दो पक्षी दो दिशाओं में अपने निवास की तलाश कर रहे थे. एक दिन खुशी के फोन का अनुभव होता है, और अनुभव के सपने फिर से ताजा हो जाते हैं. दोनों ने घंटों बातें कीं, क्या करें? कैसे करना है और फिर दोनों एक धंधे पर सेटल होने का सोचा. जहां से बात शुरू होती है वो है… चाय !!
हमारे पास पानी और फिर चाय, यह विधि है. पानी के बाद अगर भारत में कुछ पिया जा रहा है तो वो है चाय. दोनों दोस्त भी चाय के दीवाने हैं, इसलिए 2016 में एक दिन उन्होंने 3 लाख रुपये की लागत से एक बड़ी चाय की दुकान खोली. पैसे का मिलान करना भी कठिन काम था लेकिन उन्होंने उधार, रिश्तों, कुछ बचत के बल पर ऐसा किया.सब कुछ हो गया लेकिन दुकान के बोर्ड के पास पैसे नहीं बचे हैं. उन दोनों ने सिर हिलाया और एक लकड़ी के बोर्ड पर लिखा, “चाय सुट्टा बार”
कहा जाता है कि ‘हमें तो अपना ने लुटा, गैरो में कहा दम था’. यहां हर दूसरे घर में सिर्फ रिश्तेदार ही नहीं, स्टीव जॉब या मार्क जुकरबर्ग हैं. अनुभव और खुशी का भी एक ही अनुभव था, घर में भी रिश्तेदार उसका मजाक उड़ाते थे. वहीं चाय सुट्टा बार को जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिल रहा था, पूरे इंदौर में चाय गर्म थी. आज दोनों का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से ज्यादा है. एक चायदानी अब देश भर में 15 राज्यों और 165 आउटलेट तक बढ़ गई है.
आनंद और अनुभव दोनों ने 250 कुम्हारों को रोजगार भी दिया है. चासुत चाय कुल्हाड़ियों में पाई जाती है और इन कुल्हाड़ियों से कुम्हार बनाते हैं. हर दिन 18 लाख लोग अपनी दुकानों में 9 तरह की चाय का स्वाद चखते हैं. यह सारी चाय एक प्राकृतिक बर्तन में खिलाई जाती है, इसलिए कुम्हारों के पास आय का एक स्थायी स्रोत है. यहां 10 रुपये से लेकर 150 रुपये तक की चाय की किस्में उपलब्ध हैं.